
अब लगन लगी की करिए
By Dr. Sanish Chandra
–“किथे मुँह छुपाए फिरदा, मुंडया ...” भावना ने दूर से हीं चिल्लाकर कहा। शाम होने वाली थी। दूर पहाड़ियों के बर्फ पर शाम की हल्की लाल रोशनी, टेसू के फूल की तरह गाढ़ी हो रही थी। आज पूरे 12 दिन बाद केदार घाटी में धूप आई थी। मोहन को बहुत खुशी हुई कि आज उसके जन्मदिन वाले दिन धूप निकली है। सब उत्साहित थे। मोहन भी सुबह से लगातार 7 बार हेलिकॉप्टर के साथ रेसक्यू-सोर्टी में गया और फिर छुट्टी ली। अब वह इस दूर टूटे पूल के किनारे आ बैठा था। मोहन को एकांत पसंद है। मोहन ने कुछ नहीं कहा बस मुस्कुराया और हाथ ऊपर कर हिलाया। भावना तेज़ कदमों से चलती आई और धड़ाम से बैठ गई। मोहन अपने पैर नीचे गड्ढे में भरे पानी में डाल रखा था। भावना ने भी डाल दिये। दोनों बैठे रहे। मोहन ने अपने पैरों से थोड़ा पानी उलीचा। भावना ने भी वही किया। –“एक बात पूछूँ ?” मोहन ने कहा। –“एक बात पूछो?” –“तुम मेरे उस मेल से इतना नाराज़ क्यों हो गई थी?” –“क्यों ना होती? कोई लड़की दोस्त बनकर दिल्ली में तुम्हारे साथ चार-पाँच महीने घूम ले तो तुम उसे जीवनसाथी बनाने पर हीं उतर आते हो?” –“ तुम झूठ बोल रही हो? उसमें कोई ऐसी जीवनसाथी वाली बात नहीं थी।” –“उसमें थी। आई नो ऑल यू ब्वायेज। तुमलोगों को हमेशा हड़बड़ी रहती है, इमोशन्स एक्स्प्रेस करने की।” –“खुद को एक्स्प्रेस करने में बुराई क्या है?” मोहन ने पूछा। भावना थोड़ी सम्हल के बैठ गई। उसने अपने हाथ बाँधे और कहा– “आई विल टेल यू मोहन, सम डे। व्हाई इट इज वेरी डिफिकल्ट फॉर मी टु एक्सैप्ट लव, अगेन” उसने ‘अगेन’ शब्द पर ज़ोर देते हुए कहा। “इंसान को इतना कमजोर नहीं होना चाहिये कि उसे बार-बार प्यार का सहारा लेना पड़े।” –“क्यूँ? प्यार का मतलब प्यार करना है। प्यार का हासिल प्यार हीं है, भावना। प्यार, प्यार के लिये है। सच्चे प्यार में हमेशा मिठास रहती है चाहे जितना भी समय गुजरे। चाहे बंधन जुड़ें या ना जुड़ें, प्यार तो प्यार होता है।” भावना सुनती रही। सूरज की किरणें अब दूर पहाड़ों के शिखरों पर हीं रह गई थी। हल्की धुन्ध के साथ अंधेरा उतरने लगा था। दूर-दूर तक और कोई नहीं था। हवा बीच-बीच में तेज़ हो जाती थी। –“अच्छा तुम सुनाओ क्या लिखा था उस मेल के अंत में?” एक अंतराल के बाद भावना ने पुन: अपने चिरपरिचित अंदाज़ में पूछा। मोहन ने कुछ पल प्रश्नवाचक निगाहों से भावना को देखा और फिर कहा–“अब लगन लगी की करिए” “अच्छा जी, बुल्ले शाह।” भावना ने मुसकुराते हुए दूसरी लाईन जोड़ी, “ना जी सकिए ते ना मरिए।” और फिर दोनों ने खिलखिलाते हुए एक-एक पंक्ति कर अंतरा पूरा किया तुम सुनो हमारी बैना– मोहे रात दिन नहीं चैना– हुन पी बिन पलक ना सरिये अब लगन लगी की करिए जबकि भावना खूब हँस रही थी मोहन ने बेहद सरलता से कहा– “इट्स माई बर्थडे टुडे?” उसने सुना नहीं। –“व्हाट?” वो चुप होते हुए तनिक विस्मय से बोली। –“इट्स माई बर्थडे टुडे?” मोहन ने हरेक शब्द पर ज़ोर देते हुए कहा। भावना चुप हो गई। हठात् चुप । मोहन उसकी आँखों में आँखें डाले देख रहा था। भावना ने कुछ नहीं कहा। गर्दन को थोड़ा नीचे खींचते और आँखों पर बल डालकर चेहरे से हीं एक मौन सवाल पूछा जैसे सच क्या? या फिर ये कि ‘ओफ्फो मैं कैसे भूल गई?’ हवा तेज़ हुई और भावना की कुछ लटें सामने की ओर आके फहरने लगी। गोरा चेहरा, लंबा कद और खाकी वर्दी, भावना प्यारी लग रही थी। शाम अब पहाड़ों की चोटियों से जाने की तैयारी में थी । वहाँ कुछ नहीं था। एक गहरा सन्नाटा। कोई कलरव नहीं। सम्पूर्ण शांति। उस एक पल उसकी आँखों में देखते हुए मोहन इस निश्चय से आगे बढ़ा कि वह भावना को चूम ले। ** (कहानी से अंश) #kahani #somewriting